मुझे अपनी ज़िंदगी की पहली याद है, जब मैं पढ़ता भी था और काम भी करता था..
मेरा नाम कपिल है और मैं जन्म से ही अनाथ हूँ.. ..
मेरी उम्र तब 15 साल की थी, जब मैं सरकारी स्कूल में पढ़ता था और रात को एक रेस्टोरेंट में सफाई करता था..
मेरी वाकफियत, शहर के बदमाश लोगों से थी और मैं एक नंबर का हरामी था!!
रेस्टोरेंट का मलिक, रोशन नाम का एक बदमाश था और मुझे अक्सर उसके घर काम करने जाना पड़ता था..
अब तक, मेरा कद 6 फीट का हो चुका था और शरीर भी ताकतवर था..
तो उन्ही दिनों, एक दिन मैं मलिक के घर खाना देने गया तो ऐसा लगा की घर में कोई नहीं है..
मैं अभी पलटने ही लगा था की मालकिन के कमरे से आवाज़ सुनाई पढ़ी तो मैं चौंक पढ़ा..
वो बोल रही थीं – उफफफफफ्फ़.. साले हरामी, आराम से चोद माँ के दले.. रंडी हूँ क्या, साली मैं.. ?? रोहन के सामने तो मुझे भाभीजी कहता है, छिनाल की औलाद और अब देख कैसे चोद रहा है अपनी भाभी को.. ?? मादरचोद, कितना बड़ा है, तेरा लण्ड.. तेरी बीवी, खूब मज़े लेती होगी, भोसड़ी वाले.. मुझे तो थका दिया रे तूने, बिट्टू.. काश, मेरे पति का भी लण्ड, तेरे जैसा विशाल होता.. माँ के लौड़े, फाड़ कर रख डाली है, अपनी भाभी की चूत, हरामी.. अब जल्दी से चोद और निकाल अपना फवारा, कपिल, खाना ले कर आता ही होगा.. मैं क्या करूँ, मुझसे अधिक भूखी तो मेरी हरामजादी चूत है.. पता नहीं, किस कोठे की रोनक थी मेरी माँ, जो ऐसी चुड़दकड़ चूत मिली, मुझे.. चोद, मुझे बिट्टू.. चोद डाल.. ..
मेरे ना चाहते हुए भी, नज़र दरवाज़े के छेद से अंदर चली गई..
मालकिन का “गोरा जिस्म” पसीने से नाहया हुआ था..
उनका दूधिया बदन, मलिक के दोस्त के सामने सड़क की कुतिया की तरह झुका हुआ था..
कितनी प्यारी लग रही थी, मालकिन.. ..
पीछे से मलिक का दोस्त, उसको आवारा कुत्ते की तरह चोद रहा था और बगलों से हाथ डाल कर मालिकन की गोरी चूची को बेरहमी से मसल रहा था.. ..
मैं चुपचाप बाहर हॉल में बैठ कर इंतेज़ार करने लगा और थोड़ी देर में मैंने बेल बजा दी..
मालकिन एक गाउन पहन कर आई और मैंने उनको खाना पकड़ा दिया..
मेरी नज़रें झुक गईं.. लेकिन, मालकिन का जिस्म गाउन से बाहर निकलने को आतुर हो रहा था.. ..
खाना लेते हुए, मालकिन का हाथ मुझ से स्पर्श कर गया और मुझे एक करेंट सा लगा..
मालकिन की आँखें, मेरे बदन को टटोल रही थीं..
वो मुझे वासनतमक नज़रों से देख रही थीं, जैसे बिल्ली दूध के कटोरे को देखती है..
फिर मेरे सीने पर हाथ रख कर, वो बोलीं – कपिल, तुम तो जवान हो गये हो और हट्टे कट्टे भी.. कभी किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो मुझ से माँग लेना.. मैं जानती हूँ की जवानी में मर्द को बहुत मुश्किल आती है.. ..
मैं समझ गया था की वो “चुड़क्कड़ छीनाल” मुझ से चुदवाने के लिए, तड़प रही है..
लेकिन, मैं अपनी नौकरी को रिस्क में नहीं डाल सकता था..
वापिस आते हुए, मेरे बदन में एक अजीब हलचल हो रही थी और मेरा लण्ड ना चाह कर भी अकड़ रहा था..
मालकिन का “नंगा जिस्म” बार बार, मेरी नज़र के सामने आ जाता..
उस रात, मैंने मालकिन की याद में चार बार मूठ मारी!!
इधर, स्कूल में एक लड़का और एक लड़की, नये दाखिल हुए..
अंकित और अंकिता.. ..
दोनों, भाई बहन थे..
वो हमारी ट्रस्टी, आशा देवी के बच्चे थे..
आशा देवी को सब जानते थे..
वो, प्रेम और ममता की तस्वीर मानी जाती थीं..
आशा देवी, कोई 45 साल की थीं..
हमेशा सफेद साड़ी में रहती थीं क्यूँकी उनका पति मर चुका था..
सभी उनको, माँजी कह कर बुलाते थे..
अंकित, मेरी क्लास में ही था..
वो बिल्कुल लड़की जैसा दिखता था, गोरा, चिकना और कोमल..
सरकारी स्कूल का माहौल कैसा होता है, ये उसमें पढ़ने वाले ही समझ सकते हैं..
तो, स्कूल के सभी लड़के उसको “प्यारा लौंडा” कहते और प्यार से या ज़ोर से हरदम, आते जाते उसकी गाण्ड की चिकोटी काटने की कोशिश करते..
अंकित की छाती भी औरतों जैसी सॉफ्ट थी..
वो लड़का कम और हर तरह से लड़की अधिक लगता था..
उसकी बहन, अंकिता मुझ से दो क्लास आगे थी..
लंबी, सुंदर और सेक्सी!!
उसकी छाती का उठान, देखते ही बनता.. ..
स्कर्ट में उसके चूतड़, बहुत उभरे हुए दिखते!!
काले कटे हुए बाल और तेज़ आँखें देख कर मैं पहली नज़र में अंकिता से प्यार कर बैठा..
उस रात से मैं अंकिता को नंगी कल्पना करके मूठ मारने लगा..
कल्पना में, मैं अपने आप को बिट्टू और अंकिता को मालकिन के रूप में देखने लगा..
कुछ दिन बाद मुन्ना (स्कूल का एक बदमाश लड़का) ने अंकित को ग्राउंड में दबोच लिया और उसकी पैंट उतारने लगा.. ..
बेचारा अंकित, रोने लगा..
मेरी यह कहानी काफी लम्बी है और मेरी सेक्स स्टोरी की अन्य कहानियों की तरह ही, कड़ियों में प्रकाशित होगी..
मुझे पूरा विश्वास है, कहानी आपको पसंद आ रही होगी..
जल्द ही, अगली कड़ी पेश करूँगा..
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