चांग सिंह मेघालय राज्य के एक छोटे से गांव का रहने वाला है. वो अपने माँ – बाप का एकलौता बेटा है. गांव में घोर गरीबी के चलते उसे 15 साल की ही उम्र अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ कर दिल्ली आना पड़ा. दिल्ली आते ही उसे एक कारखाने में नौकरी मिल गयी. उसने तुरंत ही अपनी लगन एवं इमानदारी का इनाम पाया और उसकी तरक्की सिर्फ एक साल में ही सुपरवाइजर में हो गयी. अब उसे ज्यादा वेतन मिलने लगा था. अब वो अपने गाँव अपने माँ – बाप से मुलाक़ात करने एवं उन्हें यहाँ लाने की सोच रहा था. तभी एक दिन उसके पास उसकी माँ का फोन आया कि उसके पिता की तबियत काफी ख़राब है. चांग जल्दी से अपने गाँव के लिए छुट्टी ले कर निकला. दिल्ली से मेघालय जाने में उसे तीन दिन लग गए. मगर दुर्भाग्यवश वो ज्यों ही अपने घर पहुंचा उसके अगले दिन ही उसके पिता की मृत्यु हो गयी. होनी को कौन टाल सकता था. पिता के गुजरने के बाद चांग अपनी माँ को दिल्ली ले जाने की सोचने लगा क्यों कि यहाँ वो बिलकुल ही अकेली रहती और गाँव में कोई खेती- बाड़ी भी नही थी जिसके लिए उसकी माँ गाँव में रहती. पहले तो उसकी माँ अपने गाँव को छोड़ना नही चाहती थी मगर बेटे के समझाने पर वो मान गयी और बेटे के साथ दिल्ली चली आयी. उसकी माँ का नाम बसंती है. उसकी उम्र 31 – 32 साल की है. वो 15 साल की ही उम्र में चांग की माँ बन चुकी थी. आगे चल कर उसे एक और संतान हुई मगर कुछ ही दिनों में उसकी मृत्यु हो गयी थी. आगे चल कर बसंती को कोई अन्य संतान नही हुई. इस प्रकार से बसंती को सिर्फ एक पुत्र चांग से ही संतुष्टी प्राप्त करना पड़ा. खैर ! चांग उसका लायक पुत्र निकला और वो अब नौकरी कर के अपना और अपनी माँ का ख़याल रख सकता था. चांग ने दिल्ली में एक छोटा सा कमरा किराया पर ले रखा था. इसमें एक किचन और बाथरूम अटैच था. उसके जिस मकान में यह कमरा ले रखा था उसमे चारों तरफ इसी तरह के छोटे छोटे कमरे थे. वहां पर लगभग सभी बाहरी लोग ही किराए पर रहते थे. इसलिए किसी को किसी से मतलब नही था.
चांग का कमरे में सिर्फ एक खिडकी और एक मुख्य दरवाजा था. बसंती पहली बार अपने राज्य से बाहर निकली थी. वो तो कभी मेघालय के शहर भी नहीं घूमी थी. दिल्ली की भव्यता ने उसकी उसकी आँखे चुंधिया दी. वो लोग पहाड़ी आदिवासी समुदाय के थे. वहां के परिवार के बीच ज्यादा परदा नहीं होता है. गाँव में तो बसंती बिना उपरी कपडे के ही रहती थी और घर का सारा काम भी करती थी। बसंती अपनी सहेलियों के साथ छोटे चांग को गोद में ले कर घुमती बसंती चांग आराम से अपनी माँ के सामने सिगरेट पीता था. वो रात में सिर्फ एक छोटा सा गमछा लपेट कर सोता था. इस से उसके लंड का उभार , आकार सभी पता चलता रहता था. लेकिन उसकी माँ ने कभी इसका बुरा नही माना. क्यों कि ये उनलोगों का पारंपरिक पहनावा था. बसंती को भी चांग से कोई लाज नही लगती थी. जब चांग अपनी माँ बसंती को अपने कमरे में ले कर गया तो बसंती को वह छोटा सा कमरा भी आलिशान लग रहा था. क्यों कि वो आज तक किसी पक्के के मकान में नही रही थी. वो मेघालय में एक छोटे से झोपड़े में अपना जीवन यापन गुजार रही थी. उसे उसके बेटे ने अपने कमरे के बारे में बताया . किचन और बाथरूम के बारे में बताया. यह भी बताया कि यहाँ गाँव कि तरह कोई नदी नहीं है कि जब मन करे जा कर पानी ले आये और काम करे. यहाँ पानी आने का टाइम रहता है. इसी में अपना काम कर लेना है. पहले दिन उसने अपनी माँ को बाहर ले जा कर खाना खिलाया.
बसंती के लिए ये सचमुच अनोखा अनुभव था. वो हिंदी भाषा ना तो समझ पाती थी ना ही बोल पाती थी. वो परेशान थी . लेकिन चांग ने उसे समझाया कि वो धीरे धीरे सब समझने लगेगी.रात में जब सोने का समय आया तो दोनों एक ही बिस्तर पर सो गए. चांग का बिस्तर डबल था. इसलिए दोनों को सोने में परेशानी तो नही हुई. परन्तु चांग तो आदतानुसार किसी तरह सो गया लेकिन पहाड़ों पर रहने वाली बसंती को दिल्ली की उमस भरी रात पसंद नही आ रही थी.वो रात भर करवट लेती रही. खैर! सुबह हुई. चांग अपने कारखाने जाने के लिए निकलने लगा. बसंती ने उसके लिए नाश्ता बना दिया. चांग ने बसंती को सभी जरुरी बातें समझा कर अपने कारखाने चला गया. बसंती ने दिन भर अपने कमरे की साफ़ सफाई की एवं कमरे को व्यवस्थित किया. शाम को जब चांग वापस आया तो अपना कमरा सजा हुआ पाया तो बहुत खुश हुआ. उसने बसंती को बाजार घुमाने ले गया और रात का खाना भी बाहर ही खाया.अगले 3 -4 दिनों में बसंती अपने पति की यादों से बाहर निकलने लगी थी और अपने आप को दिल्ली के वातावरण अनुसार ढालने की कोशिश करने लगी. चांग भी अब बसंती पर अधिकार के जमाने लगा था.एक रात बारह बजे बिजली चली गयी.
जिसकी वजह से गरमी के मारे बसंती की नींद खुल गयी. और वह एक हाथ वाल पंखा से अपने आपको और चांग को हवा दे रही थी. लेकिन उस से बसंती को राहत नहीं मिल रही थी. वो कुछ क्यादा ही परेशान हो गयी थी. क्यों की उसे दिल्ली की गर्मी बर्दाश्त करने की आदत नही हुई थी. तभी चांग की नींद खुली तो उसने देखा कि उसकी माँ गरमी से बेहाल हो रही है. चांग – क्या हुआ? सोती क्यों नहीं?बसंती – इतनी गरमी है यहाँ.चांग – तो इतने भारी भरकम तौलिया क्यों पहन रखे हैं?बसंती – मेरे पास तो यही हैं. चांग – गाउन नहीं है क्या? बसंती – नहीं. चांग – तुमने पहले मुझे बताया क्यों नहीं? कल मै लेते आऊँगा. तू एक काम कर अभी ये सब खोल कर सो जा. बसंती – बिना कपड़ो के ही ? चांग ने कहा – और नहीं तो क्या? गाँव में कैसे रहती थी? भूल गयी वो क्या?कौन तुझे रात में यहाँ देखेगा? बसंती – नहीं, भूली तो नहीं हूँ , लेकिन वो तो गाँव था न। इस दिल्ली में मैं उस तरह थोड़े ही रह सकती हूँ ?आज की रात किसी तरह काट लेती हूँ. तू कल सुबह मेरे लिए गाउन लेते आना. अगले दिन चांग अपनी माँ के लिए एक बिलकूल पतली सी गंजी खरीद कर लेते आया. ताकि रात में माँ को आराम मिल सके. वो गंजी सिर्फ पतली ही नही बल्कि छोटी भी थी. बसंती की नाभी भी किसी तरह ही ढँक रहे थे. चांग ने बताया कि दिल्ली में सभी औरतें इस तरह की गंजी पहन कर ही सोती हैं बसंती ने किचन में जा कर अपनी पहले के सभी कपडे खोले और गंजी और पेंटी पहन ली. गंजी किसी पतले गमछे की तरह काफी पतली थी. जिस से गंजी उसके बदन से चिपक गए थे. बसंती का जवान जिस्म अभी 32 साल का ही था. उस पर पहाड़ी औरत का जिस्म काफी गदराया हुआ था. गोरी और जवान बसंती की चूची बड़े बड़े थे. गंजी का गला इतना नीचे था कि बसंती की चूची का निपल सिर्फ बाहर आने से बच रहा था. बसंती वो गंजी पहन कर किचन से बाहर आयी. चांग ने अपनी माँ को इतने पतले से गंजी और पेंटी में देखा तो उसके होश उड़ गए.
बसंती का सारा जिस्म का अंदाजा इस पतले से गंजी से साफ़ साफ़ दिख रहा था. चांग ने तो कभी ये सोचा भी नही था कि उसकी माँ की चूची इतनी बड़ी होगी. वो सिगरेट पीते हुए बोला – अच्छी है. देखना गरमी नहीं लगेगी. उस रात बसंती सचमुछ आराम से सोई. लेकिन चांग का दिमाग माँ के बदन पर टिक गया था. वो आधी रात तक अपनी माँ के बदन के बारे में सोचता रहा. वो अपनी माँ के बदन को और भी अधिक देखना चाहने लगा. उसने उठ कर कमरे का लाईट जला दिया. उसकी माँ का गंजी बसंती के पेट के ऊपर तक चढ़ चुका था. जिस से बसंती की पेंटी भी चांग को दिख रही थी. चांग ने गौर से बसंती की चूची की तरफ देखा. उसने देखा कि माँ की चूची का निपल भी साफ़ साफ़ पता चल रहा है. वो और भी अधिक पागल हो गया. उसका लंड अपनी माँ के बदन को देख कर खड़ा हो गया. वो बाथरूम जा कर वहां से अपनी सोई हुई माँ के बदन को देख देख कर मुठ मारने लगा. मुठ मारने पर उसे कुछ शान्ति मिली. और वापस कमरे में आ कर लाईट बंद कर के सो गया. सुबह उठा तो देखा माँ फिर से अपने पुराने कपडे पहन कर घर का काम कर रही है. लेकिन उसके दिमाग में बसंती का बदन अभी भी घूम रहा था. अगले 2 रात वो बसंती के बदन की कल्पना कर कर के पागल हो गया. बसंती भी अब अपने बेटे के सामने ही कपडे बदल लेती थी.
जब भी बसंती उसके सामने गंजी और पेंटी में रहती तो चांग अपने गमछी के अन्दर हाथ डाल कर अपने लंड को सहलाते रहता था. कई बार बसंती ने रात को चांग के पतले से गमछे के भीतर एक जवान लंड को खड़ा होते हुए देख चुकी थी. इस क्रम बसंती को भी अब लाज नही लगती थी. अब चांग बसंती का पूरा जिस्म नंगा देखना चाहता था. एक रात चांग ने सिगरेट सुलगाया और माँ से पूछा – माँ, मैं तो तेरे लिए सिर्फ एक ही गंजी लाया हूँ . तू हर रात उसे ही पहनेगी क्या? बसंती – हाँ, वही पहन लुंगी. चांग – नहीं, एक और लेता आऊँगा. कम से कम दो तो होने ही चाहिए. बसंती – ठीक है, जैसी तेरी मर्जी. चांग शाम को बाज़ार गया और जान बुझ कर बिलकूल झीनी कपड़ों वाली पारदर्शी व जालीदार ब्रा खरीद कर लाया. आ कर उसने अपनी माँ को वो ब्रा दिया और कहा – माँ, आज रात में सोते समय ये नया ब्रा पहन लेना. इसे पहनने के बाद गंजी पहनने की कोई जरुरत नहीं है. बसंती ने ब्रा को देखते हुए ख़ुशी से कहा – अरे वाह…ये तो जालीदार ब्रा है. रात में सोते से पहले जब बसंती ने वो ब्रा और पेंटी पहना तो ब्रा के अन्दर का सारा नजारा दृश्यमान हो रहा था.. उसकी गोरी चूची और निपल तो पूरा ही दिख रहा था. उस ब्रा और पेंटी को पहन कर वो चांग के सामने आयी. चांग अपनी माँ के बदन को एकटक देखता रहा. बसंती- देख तो बेटा, कैसा है ये ब्रा? चांग ने गौर से अपनी माँ के चूची और उसके बीच की घाटी और समूचे बदन को एकटक निहारते हुए कहा – अरे माँ, तू तो एकदम जवान दिखने लगी. यह सुन कर बसंती एकदम खुश हो गयी. उस ने कहा –
देख न ठीक से बैठ नही रहा है. पीछे का हुक कुछ खराब है क्या? इसे सेट कैसे करूँ. चांग ने पीछे से ब्रा के हुक को सही से लगाने लगा. मगर हुक लग नहीं रहा था. हुक कुछ टेढा था. चांग ने पीछे से पूरा हुक खोल दिया. और हुक ठीक करने लगा. उसके सामने उसकी माँ की नंगी पीठ थी. उसके नीचे पेंटी के अन्दर से गांड की दरार दिख रही थी. किसी तरह कांपते हाथों से चांग ने ब्रा का हुक ठीक किया और लगा दिया. मगर अब भी ब्रा चूची पर सेट नही कर रही थी. चांग ने सामने जा कर ब्रा को इधर उधर कर चूची को ब्रा में सेट किया. ये सब करते समय वो जान बुझ कर काफी समय लगा रहा था. और हाथ से अपनी माँ के चूची को बार बार छूता था. और दबाता था. बसंती की गोरी – गोरी चुचीयों को नजदीक से निहार रहा था. इस बीच इसका लंड पानी पानी हो रहा था. वो तो अच्छा था कि उसने गमछा पहन रखा था. लेकिन उसका लंड इतना तन गया था कि गमछा तम्बू बन चूका था. बसंती को भी पता था कि उसका बेटा उसकी चुचियों को निहार रहा है. लेकिन वो भी मस्त हो रही थी. और मस्ती से अपने बेटे से अपनी चूची को ब्रा में सेट करवा रही थी. अचानक उसकी नजर चांग के लंड की ओर गयी. उसने चांग के गमछा को तम्बू बना देख समझ गयी की चांग का लंड खड़ा हो गया है. वो चांग के लंड के विषय में सोच रही थी. और उसके साइज़ का अंदाजा लगा रही थी. उसका लंड पुरे उफान पर था. रह रह कर वो अपने लंड को भी दबा रहा था. फिर वो तुरंत बाथरूम गया और अपना गमछा खोल कर अपनी माँ के चूची को याद कर कर के लंड को मसलने लगा और मुठ मार कर अपनी गरमी शांत की. तब तक उसकी माँ कमरे में अँधेरा कर के सो चुकी थी. चांग वापस नंगा ही बिस्तर पर आया .
अचानक उसे कब नींद आ गयी. उसे ख़याल भी नहीं रहा और उसका गमछा खुला हुआ ही रह गया. सुबह होने पर रोज़ की तरह बसंती पहले उठी तो वो अपने बेटे को नंगा सोया हुआ देख कर चौक गयी. वो चांग के लंड को देख कर आश्चर्यचकित हो गयी. उसे पता नहीं था कि उसके बेटे का लंड अब जवान हो गया है और उस पर इतने घने बाल भी हो गए है. वो समझ गयी कि उसका बेटा अब जवान हो गया है. उसके लंड का साइज़ देख कर भी वो आश्चर्यचकित थी क्यों कि उसने आज तक अपने पति के लंड के सिवा कोई और जवान लंड नहीं देखा था. उसके पति का लंड इस से छोटा ही था. हाय, कितना मस्त लंड है इसका लंड इतना बड़ा हो गया है और मुझे पता भी नहीं चला. काश एक बार ऐसा लंड मेरे चूत में मिल जाता. कमबख्त ! कितने दिन हो गए चुदाई हुए. वो अभी सोच ही रही थी कि अचानक चांग की आँख खुल गयी और उसने अपने आप को अपनी माँ के सामने नंगा पाया. वो थोडा भी शर्मिंदा नहीं हुआ और आराम से गमछा को लपेटा और कहा – वो रात में काफी गरमी थी , इसलिए मैंने गमछा खोल दिया था. वैसे, जब तू यहाँ नही रहती थी तो मै तो इसी तरह ही सोता था. बसंती थोडा सा मुस्कुरा कर कहा – तो अभी भी सो जाया करो न बिना कपडे के. मुझसे शर्म कैसी? मै अभी तेरे लिए चाय बना देती हूँ. चांग ने सिगरेट के कश लेते हुए कहा – अच्छा ? तुम्हे कोई दिक्कत नहीं? बसंती – नहीं रे, अपने बच्चे से क्या दिक्कत? बसंती किचन में चाय बनाने तो चली गयी लेकिन वो चांग के लंड को देख कर इतनी गर्म गयी कि किचन में ही उसने अपने चूत में उंगली डाल कर मुठ मार लिया. तब कहीं उसे शान्ति मिली. उसी रात बसंती फिर से सिर्फ ब्रा और पेंटी पहन कर चांग के बगल में सोयी.
चांग ने आधी रात को कर अपना गमछा पूरी तरह खोल दिया था और बसंती के उठने से ठीक पहले पेशाब लगने की वजह से उठ गया और नंगे ही बाथरूम जा कर वापस आया और अपनी माँ के बगल में लेट गया. चांग ने देखा कि बसंती की छोटी और पतली पेंटी थोड़ी नीचे सरक गयी है जिस से बसंती की चूत के बाल स्पष्ट दिख रहे थे. इस वीभत्स नज़ारे को देख कर चांग का लंड तनतना गया. और अपने लंड को सहलाने लगा. तभी बसंती की नींद खुलने लगी. ये देख कर चांग झट से अपनी अपने लंड को एक हाथ से पकडे हुए रखा और आँखे बंद कर के सोने का नाटक करने लगा. कुछ ही पल में ज्यों ही बसंती उठी तो देखती है कि उसका बेटा लंड तनतनाया हुआ है. और एक हाथ से चांग उसे धीरे धीरे सहला रहा है. बसंती का दिमाग फिर से गर्म हो गया. वो चांग के बगल में लेटे कर चांग के खड़े लंड को निहारते हुए सोचने लगी – हाय, अपने बेटे का ही लंड मुझे मिल जाए तो क्या बात है? साले का लंड इतना सुन्दर है कि मन कर रहा है कि अभी मुह में ले कर चूसने लगूं . पांच मिनट तक उसके लंड को निहारने के बाद वो चांग से सट कर लेट गयी और अपने चूची को उसके नंगे सीने पर दबाते हुए और प्यार से उसके सीने पर हाथ फेरते हुए चांग को जगाया. चांग तो जगा हुआ था ही. वो आँख खोला तो अपनी माँ को अपने अपने नंगे बदन में सटा हुआ पा कर उसका लंड और भी कड़क हो गया. बसंती का बदन भी लगभग नंगा था.
और जो थोडा बहुत बचा हुआ था वो भी बसंती दिखने से परहेज नहीं कर रही थी. उसने भी तक अपनी पेंटी को ऊपर नहीं किया था और उसकी बड़ी -बड़ी और काली झांट बिलकूल खुलेआम दिख रहे थे. ये देख कर चांग का लंड और टाईट हो गया. बसंती ने भी सोच लिया कि जब तक चांग को अपनी चूत के बाल और चूची दिखा कर गर्म कर दूंगी. चांग ने कहा – कल रात भी बहुत गरमी थी ना इसलिए पुरे कपडे खोल के नंगे ही सो गया था. बसंती ने चांग के नंगे पेट को सहलाते हुए मुस्कुरा कर कहा – तो क्या हुआ? यहाँ कौन दुसरा है? मै क्या तुझे नंगा नहीं देखी हूँ? माँ के सामने इतनी शर्म कैसी? चांग – वो तो मेरे बचपन में ना देखी हो. अब बात दूसरी है. बसंती – क्यों अब , क्या दूसरी बात है? दो साल पहले तक तो तू मेरे साथ नंगे ही सोता था. मेरे आँखों के सामने ही ना तेरे लंड पर बाल आये थे . लंड पर बड़े बड़े बाल हो गए थे तब भी तू मेरे साथ नंगा ही चिपक कर सोता था. बसंती का हाथ थोडा और नीचे गया चांग के लंड के बालों को खींचते हुए हुए बोली – पहले और अब में क्या फर्क है ? यही ना तेरे बाल अब थोडा बड़े बड़े हो गए हैं और तेरा लंड भी पहले से बड़ा और मोटा हो गया है , और क्या? अब मेरा बेटा जवान हो गया है. लेकिन माँ के सामने शर्माने की जरुरत नहीं. आज से तूझे मेरे सामने कपडे पहन कर सोने की कोई जरुरत नहीं है. मै तेरे शरीर के हर हिस्से को जानती हूँ. मुझसे परदा करने की कोई जरुरत नहीं है तुझे, मेरे बेटे. जा जाकर बाथरूम में पिशाब कर. देख कब से तेरे को पिशाब लगी है. चांग – तुझे कैसे पता चला माँ, मुझे जोरों से पिशाब लगी है? बसंती ने हौले से चांग के लंड को पकड़ा और सहलाते हुए कहा –
तेरा लंड इतना टाईट हो गया है. इस से मै समझ गयी. जा जल्दी जा, फिर हम चाय पियेंगे. चांग – माँ, सिर्फ पिशाब ही नहीं करना है मुझे…कुछ और भी करना पड़ता है. बसन्ती ने हँसते हुए कहा – जा ना तो. कर ले वो भी. मै सब समझती हूँ कि क्या करता है तू आजकल. चांग हँसते हुए नंगे ही बाथरूम गया. लेकिन वहां उसने सिर्फ पिशाब ही नही किया बल्कि अपनी माँ की मस्त चूची को याद कर कर के मुठ मारने लगा. साथ ही साथ वो जोर जोर से आह आह की आवाजें भी निकाल रहा था ताकि उसकी माँ सुन सके. बसंती ने सचमुच उसकी आवाज़ सुन ली और वो समझ गयी कि उसका बेटा बाथरूम में मूठ मार रहा है. सुन के वो फिर मस्त हो गयी. वो भी किचन में गयी और अपनी चूत की मुठ मारने लगी. यानी आग इधर भी लग गयी थी और उधर भी. चांग अब नंगा ही सोने लगा. और उधर बसंती उसके सामने ही अपनी पेंटी में हाथ डाल कर अपने चूत को सहलाती रहती थी. उसके लंड को याद कर कर के रात को बिस्तर पर ही मुठ मारती रही. अगले दो दिन के बाद रात में आधी रात को चांग अपने खड़े लंड को मसलने लगा. माँ के चूत और चूची को याद कर कर के उसने बिस्तर पर ही मुठ मार दिया. सारा माल उसके बदन पर एवं बिस्तर पर जा गिरा. एक बार मुठ मारने से भी चांग का जी शांत नहीं हुआ. 10 मिनट के बाद उसने फिर से मुठ मारा. इस बार मुठ मारने के बाद उसे गहरी नींद आ गयी. और वो बेसुध हो कर सो गया. सुबह होने पर बसंती ने देखा कि चांग रोज़ की तरह नंगा सोया है और आज उसके बदन एवं बिस्तर पर माल भी गिरा है.
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